दक्षिण भारत में कला और साहित्य के विकास में कांची के पल्लवों का योगदान

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दक्षिण भारत में कला और साहित्य के विकास में कांची के पल्लवों का योगदान



दक्षिण भारत में कला और साहित्य के विकास में कांची के पल्लवों का योगदान


दक्षिण भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास में कांची के पल्लव राजवंश का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। 4वीं से 9वीं शताब्दी तक शासन करने वाले पल्लवों ने कला, साहित्य, वास्तुकला और धर्म के क्षेत्र में अपार योगदान दिया। उनकी राजधानी कांचीपुरम न केवल राजनीतिक, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गई थी।

पल्लवों का कला में योगदान

पल्लवों ने दक्षिण भारत में वास्तुकला और मूर्तिकला की अद्वितीय परंपराओं को स्थापित किया। उनकी स्थापत्य शैली ने चोल और होयसल जैसे बाद के दक्षिण भारतीय राजवंशों को प्रभावित किया।


रथ मंदिरों की शैली:

पल्लवों की सबसे बड़ी उपलब्धि महाबलीपुरम में निर्मित रथ मंदिर हैं। एक ही चट्टान को काटकर बनाए गए ये मंदिर, जैसे कि पंच रथ, वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।


शिल्पकला और मूर्तिकला:

महाबलीपुरम के शिलालेख और मूर्तियां, जैसे "अर्जुन का तप" और "गंगावतरण", उस समय की उत्कृष्ट मूर्तिकला का प्रमाण हैं। इन मूर्तियों में धार्मिक विषयों के साथ-साथ सामाजिक और प्राकृतिक तत्वों को भी उकेरा गया है।

द्रविड़ शैली का आरंभ:

पल्लवों ने दक्षिण भारत में द्रविड़ स्थापत्य शैली की नींव रखी। कांचीपुरम के कैलाशनाथ मंदिर और वैकुंठ पेरुमल मंदिर इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

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साहित्य में योगदान

पल्लव राजाओं ने तमिल और संस्कृत साहित्य को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

साहित्य का संरक्षण:

पल्लवों ने संस्कृत के विद्वानों को प्रोत्साहित किया। माघ, भारवि, और दण्डि जैसे प्रसिद्ध कवि इस युग में सक्रिय थे।

तमिल साहित्य का उत्थान:

पल्लवों के शासनकाल में तमिल साहित्य को भी प्रोत्साहन मिला। इस काल में आलवार और नयनमार संतों ने भक्ति साहित्य का निर्माण किया।

नालंदा और कांची का संबंध:

कांचीपुरम को "दक्षिण का नालंदा" कहा जाता है। यहां के शैक्षणिक संस्थानों ने बौद्ध और जैन धर्म के साथ-साथ वैदिक साहित्य के अध्ययन को भी बढ़ावा दिया।

तांडव शास्त्र:

भरतनाट्यम और तांडव जैसे नृत्य रूपों का शास्त्रीय विकास भी पल्लवों के संरक्षण में हुआ।
धर्म और संस्कृति का योगदान

पल्लव राजाओं ने धार्मिक सहिष्णुता को अपनाया और सभी धर्मों के विकास में योगदान दिया।

शैव और वैष्णव परंपराएं:

पल्लवों ने शैव और वैष्णव परंपराओं को समान रूप से प्रोत्साहन दिया। उनके मंदिरों में शिव और विष्णु दोनों की मूर्तियां स्थापित की गईं।

बौद्ध धर्म का संरक्षण:

पल्लवों के शासनकाल में बौद्ध धर्म को भी संरक्षण मिला। कांचीपुरम में कई बौद्ध विहार स्थापित किए गए।


विदेशी संबंध:

पल्लवों ने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों, जैसे कि कंबोडिया, जावा और सुमात्रा, के साथ सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध स्थापित किए। इससे भारतीय संस्कृति और कला का प्रसार हुआ।

निष्कर्ष


पल्लव राजवंश ने दक्षिण भारत में कला, साहित्य और धर्म के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनकी स्थापत्य और साहित्यिक परंपराएं न केवल दक्षिण भारत, बल्कि संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक धरोहर में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। कांचीपुरम को दक्षिण भारत का सांस्कृतिक केंद्र बनाने में उनका योगदान अमूल्य है। पल्लवों की उपलब्धियां आज भी उनके गौरवशाली इतिहास का प्रमाण देती हैं।

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